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मांस बन्दी से सांस बन्दी की ओर....

Updated on Tuesday, April 11, 2017 15:37 PM IST


2014 के संसदीय चुनाव परिणामों से यह नखालस आभास हो गया था कि अब देश का राष्ट्रीय एकधर्मी विकास होना तय है। लेकिन 2017 यूपी जीतने के बाद विकास का ऐसा दमघोटू अंधड़ चलेगा इसका अंदाज वामपंथी व सैकुलर टाइप कुछ लोगों को छोड़ दे तो किसी को भी इसका भान तक नहीं पड़ा होगा । वैसे भी आज जिनको पता है उनको पता होने या ना होने से संघी सुनामी पर रत्तीभर भी फर्क पड़ने वाला नहीं है। आज के ग्लोबल विलेज में जहां अधिकतर मामलों के डिजिटल होने का भौंपू बजाया जा रहा हो वहां ट्रम्प की समझ व कार्यशैली और मोदी जी की सोच व शैली में अनेकों समानताएं ढूढनें में उर्जा खपाने की कतई जरुरत नहीं है। बड़े व्यापारिक घरानों, कोरपोरेटो व तमाम अम्बानी-अड़ानी टाइप देशी-विदेशी पूंजीपतियों को छकाने की सारी कवायदंे स्किल इंडियां, डीजिटल इंडिया और भी ना जाने कौन-कौन से इंडिया के तहत व तमाम संस्थाओं के नीजिकरण के नाम पर बेधड़क की जा रही है। मन ही मन में राम मंदिर का झन्डा उठाए अगड़ी पंक्ति में भारत माता की जय, वन्दे मातरम का जोर-शोर से जयकारा लगाने वाला धनपत और अहमद भी सोच रहा है कि जनाब मंदिर बनाने में हम अपनी जी जान लगा देगें पर हमारें बच्चों के लिए स्कूल व हस्पताल भी बन जाएं तो कौनो पहाड़ गिर जाएगा क्या?(SUBHEAD)
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मंहगाई जैसे जीवन के मूलभूत सवालों से देश के आवाम को निरंतर भरमाया जा रहा है। बाहें फैला-फैलाकर ऐसा सुन्दर, मोहक जाल बुनकर उसमे ऐसा दाना डाला जाता है कि चतुर से चतुर भी उसमें स्वयं को फंसाने से रोक नहीं पाता है । बेचारे रोमियों तो नाहक ही बदनाम हैं। आज आठों पहर मीडिया के तमाम भौपूओं पर एंकर से लेकर एडिटर तक, बड़े-बड़े लिखाड़ो से लेकर तथाकथित बुद्धिजीवियों व समाजसेवियों तक भांत-भांत के हिन्दुराष्ट्र निर्माता सामने आ रहे हैं। आज मीडिया सत्ता के प्रति अपनी पूरी निष्ठा व सेवाभावना दर्शाते हुए आफक अली जैसे गउप्रेमियों को ढूंढ-ढूंढकर ला रहा है। मीडिया में बार-बार मुस्लिम लोगों को दिखाकर उनसे कहलवाया जा रहा है कि उन्हें हिन्दुत्व व हिन्दुराष्ट्र बनने से कोई दिक्कत नहीं है। आखिरकार ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान से देश के सारे मुसलमानों को यह संदेश और अपील करवा ही दी कि सारे मुसलमानों को गोमांस खाना बन्द कर देना चाहिए । तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले भांत-भांत के छुटभैये टाइप लोग, मीडिया आदि जो कभी 3 साल पहले बदहवास हो चोबीसों पहर संयासी, यायावरी, कुशल राजनीतिज्ञ, ऋषि, की उपाधियां बेखौफ बांट रहे थे आज एक बार फिर वे ये सारी उपाधियां योगी जी को देते हुए कह रहे हैं कि आध्यात्मिकता की गंगा, पराक्रम की जमुना और ज्ञान की सरस्वती इन्में साथ-साथ बहती हैं। इनकी शपथ लेने के एक घन्टें के भीतर ही यूपी पुलिस इतनी तत्पर हुई कि अनेकों जिलों में असंख्य बुचड़खानों व मांस की दुकानों को बंद करवा दिया गया। हालांकि दुहाई तो कानून की व राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशांे की दी जा रही है पर संघ की मूल मंशा दलित, आदिवासी, मुस्लिम व अल्पसंख्यक विरोधी होने की मन ही मन में सभी भांप रहे हैं। शाकाकारियों की सोचानुसार मनु के तथाकथित संविधान मनुस्मृति को भारतीय समाज पर येन केन प्रकारेण थांेपा जा रहा है। कभी संस्कृति के नाम पर तो कभी संस्कृत, राष्ट्रप्रेम व राष्ट्रभक्ति के नाम पर। दुनियां जान रही है कि मांस बेचने की छोटी-मोटी दुकानें कौन चला रहा है और बुचड़खाने अधिकतर किन सम्प्रदायों के लोगों के हैं ? और कौन उन्में मजदूर है? जगजाहिर है कि आज देश की बहुसंख्यक हिन्दु आबादी मांस भक्षी हैं। वर्तमान महंगाई के आलम में जब दालें व तमाम सबिजयां गरीबों, दलितों, मजदूरों यानि बहुसंख्यक आबादी की खरीद क्षमता से बाहर हो गई हो तो ये आबादियां गोमांस व भैंस का मांस खाकर ही अपने शरीर की प्रोटीन-विटामीन की जरुरतों की पूर्ति कर रही हैं जो कि चिकन व मटन से सस्ता पड़ता है।
करोड़ों की इस आबादी से न केवल इनकी रोटी छिनी जा रही है बल्कि रोजगार भी छीना जा रहा है। जल्द ही चमड़ा उद्योग पर भी ताले जड़ दिए जाऐगें । नए रोजगार देने की बजाय पहले से जैसे-तैसे अपने परिवारों का पेट पाल रहे लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिनना कहां तक न्यायसंगत होगा? लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता का इससे क्रूर व भद्दा मजाक कोई ओर नहीं हो सकता है। विशुद्ध बिजनेसमैन रामदेव ने तो यहां तक कह दिया है कि कोई भी बुचड़खाना भगवान के कानून के अनुसार वैध नहीं है। संभवतः बाबा के उद्योग में बनने वाली तमाम दवाईयां शाकाहारी होती होगी? पर रामदेव शायद जानते नहीं है कि भारत में भगवान का कानून नहीं बल्कि डा भीमराव अम्बेडकर द्वारा रचित संविधान ही पूर्ण वैध व कानूनी है जिसका पालन किया जाता है। दूनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीजिक दल तय कर रहे है कि लोगों के घरों की रसोई में क्या-क्या पकेगा ? और कौन क्या खाएगा ? हो सकता है 21वीं सदी के लोकतंत्र में ऐसा ही होता हो ?
अनुमान है कि अकेले यूपी में मांस का सालाना कारोगार 50000 करोड़ रुपए है। जहां यह धंधा 5-6 लाख लोगों को रोजगार दे रहा है। आज देश के हर राज्य में मांस बंदी नोटबंदी टाइप मुद्दा बन गया है। बड़ी आबादी भयभीत सी और संकुचाई सी नजर आ रही है। कहीं जनता पर गउकर थांेपा जा रहा है तो कहीं गउ मंत्रालय तक खोले जा रहे हैं ? पर इस बात का सरकार से कोई लेना देना नहीं है कि देश के सारे बड़े मांस निर्यातक सब हिन्दू हैं। लोग कहां जान रहे हैं कि गाय के बहाने दलितों-मुस्लिमों की सांसे हिंसात्मक रुप से बंद की जा रही हैं। हम बिल्कुल भी यह नहीं कह रहे हैं कि आज देश को गाय के नाम पर जाति, धर्म व साम्प्रदायिक दंगों की भट्ठी में झोंका जा रहा है । आज तमाम तरह के तंत्र सत्ता की जी हजूरी करने में पूर्ण व्यस्त हैं। आज यूपी के कुछ मुस्लिमों द्वारा गउशालाएं खोलना एक प्रायोजित व तुष्टिकरण के राजनीतिक शोशे के अलावा कुछ नहीं लग रहा है । यूपी के बाद राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखंड, आसाम जैसे तमाम संघ-भाजपा शासित राज्यों में मांस बेचने तक पर पाबंदी लगा दी गई है। गाय के नाम पर आए दिन दलितों-मुस्लिमों की सरेआम सामूहिक हत्याएं की जा रही हैं। सत्ता ना केवल मौन है बल्कि तमाशाबीन बनी हुई है। कुछ समय पूर्व हरियाणा के दुलिना में गाय के नाम पर पांच दलितों की हत्या फिर यूपी के अखलाक की हत्या के बाद अब अलवर में हरियाणा के दूधिये पहलू खान की सरेआम सामूहिक हत्या। अब देखना यह है कि क्या दलितांे- मुस्लिमों की निरंतर हो रही हत्याओं के पीछे मामला सिर्फ गोरक्षा का ही है या कुछ ओैर है। क्योंकि गोरक्षा में रक्षा गउओं की जाती है जो आज हजारों की संख्या में गलियों सड़कांे पर भूखी-प्यासी पालिथिन खाकर मर रही हैं। रक्षा जिन्दा बची छुटटी धूम रही गउओं की की जानी चाहिए न कि गाय के नाम पर छांट-छांट कर कुछ खास जाति-धर्म के लोगों की हत्याएं की जाएं। अभी दो रोज पहले ही झारखंड गुमला में एक मुस्लिम युवा की पीट-पीट कर इसलिये हत्या कर दी कि वह एक हिन्दु लड़की से प्रेम करने का गुनाह कर बैठा था। चहुंओर भयंकर खलबली का माहौल है। यूपी पुलिस की रोमियो स्कवाएड की करतुतें मीडिया के माध्यम से देश के सामने हैं कि कैसे लोगों को नाहक ही प्रताडि़त व ठोका-पीठा जा रहा है। स्पष्ट है कि लव जेहाद, घर वापिसी जैसे कार्यक्रमों को नाम बदकर समाज पर थोपा जा रहा है। मुसलमानों की अजान बन्द कराने का मिशन जोरों पर है। सहिष्णुता के नाम पर मस्जिदों में हिन्दु देवताओं की मूर्तियां स्थापित किए जाने की योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। ये तमाम प्रायोजन एक खास तरह का नक्शा बना रहे हैं जिसको संदर्भित करके समझने की जरुरत है।
एक रोज पूर्व ही तेलंगाना के भाजपा विधायक टी राजा सिंह ने कहा कि राम मंदिर उनका संकल्प है जिसके लिए वो किसी की भी जान लेने व देने को सजा है। ये महोदय सार्वजनिक रुप से घोषणा कर चुके हैं कि राम मंदिर के विरोधियों का ये सर कलम कर देंगें। ये कहते है कि विधायक से पहले ये हिन्दु हैं, तथा गाय के मामले इन्होनें कहा कि इंसान की जान की कीमत गाय से बढकर नहीं है। आज किसकी मजाल है कि इनका कोई कुछ बिगाड़ सके आखिर सत्तासीन दल के नेता हैं कोई ऐरे-गैरे थोड़े ही हैं । बल्कि ऐसा कहकर इन्होनें संघ-भाजपा के आकाओं की नजरों में ना केवल अपना कद उंचा किया है बल्कि अपनी देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम साबित किया है।
आज गाय व हिन्दुत्व संविधान, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता व इंसानियत इन सबसे उपर है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि ’हिन्दुस्तान’ का अगला राष्ट्रपति कहीं भागवत जी की जगह किसी ......को ही ना बना दे। प्रचार किया जा रहा है कि मांस खाने वाले अशुद्ध, हिंसक, अछूत, व क्रूर होते हैं और शाकाहारी नेक व दयालु। संवैधानिक तौर पर कौन क्या खाएगा यह उसकी निहायत ही व्यक्गित स्वतंत्रता है। ऐसी समझ है कि धर्मनिरपेक्ष देश में एक धर्म दूसरांे पर अपनी सोच को नहीं थोप सकता है। यह अनुशासन कैसे लागू किया जा सकता है कि सभी लोग प्रातः 10 बजे राष्ट्रगान गाएंगें और सायं 4 बजे वन्दें मात्रत गाएगें। हालांकि यह सही है कि लोकतंत्र में तमाम निर्णय बहुमत के वोट से होते हैं फिर देश की बहुमत जनता ने ही तो सत्ता पर संघ-भाजपा को आसीन किया है और अब यूपी में भी। फिर ये बेफजूली बात कहां से आ गई कि आज लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, दलित, मुस्लिम खतरें में है। 403 में 325 का आंकड़ा बहुमत की वोट से ही तो आया है। फिर इनके बारे में तानाशाही का बेसुरा राग क्यों अलापा जा रहा है। ये बहुमत से ही तो तय हो रहा है कि कौन क्या खाएगा, क्या पहनेगा, उनके कैसे विचार होगें, कौन किस धर्म को मानेगा। कौन देशभक्त होगा और कौन देशद्रोही, कौन रोमियो होगा और कौन कृष्ण ! इधर के तमाम नेता चिंघाड़-चिंघाड़ कर कह रहे हैं कि कौन माई का लाल है जो मन्दिर बनने से रोक सकता है ? कुछ सिरफिरे लोगों को कौन समझाए कि वर्तमान हिन्दुस्तानी लोकतंत्र में हम मोदी जी से अगले योगी जी के फेज में प्रवेश कर चुके हैं। जहां टीआरपी के मामले मे योगी जी सबको पछाड़ चुके हैं। तभी महोदय स्टार प्रचारक बन दिल्ली के स्थानीय चुनावों में भी पधार रहे हैं। जिनका स्वागत है। कुछ दबी सी जबान में खूसर-फुसर चल निकली है कि कहीं योगी जी 2019 या 2024 में मोदी जी की जगह.....?
सबने देखा कि कैसे कब्रिस्तानों को शमशानों में और और नमाज को सूर्य नमस्कार में बदलने व समान बताने के तमाम प्रयोजन हमारे बीच चल रहे हैं। फिर चर्च और मस्जिदों को मन्दिर में बदलने से रोकने की औकात कौन रखता है ? ये सब कार्यवाहियां सहिष्णुता के लिए, देशभक्ति के लिए, राष्ट्र निर्माण की दिशा में संघ के मिशन 2020 की रोशनी में ही हो रही हैं। डरने, हड़बड़ाने व बौखलाने की कतई जरुरत नहीं है। ठन्ड रखे ठन्ड! सावधान! कार्य प्रगति पर है !
प्रगति की फिजाएं निरन्तर उदघाटित की जा रही हैं ! देखनें में आ रहा है कि भारत रुपी ब्रम्हांड में योगी जी एक नया सूर्योदय है। जिसमें विकास की अपार संभावनाएं ठीक अदरक की तरह नित नए-नए आकार लेती हुई देखी जा सकती हैं। शायद देश का आवाम ऐसे ही अदरकी विकास के लिए हलकान हुआ जा रहा है।
देश में सैकुलरिज्म व सोसलिज्म का बेसुर-ताल वाला राग गाने वालों को कौन समझाएं कि भारतीय लोकतंत्र में व्यक्ति की स्वतंत्रता की बजाय नेताओं की स्वतंत्रता सबसे पवित्र बन गई है। देश ने देखा कि हमारे एक जनसेवक ने किस तरह एक ही जहाज में जरा सी उनकी सीट इधर-उधर होने पर कैसे देश, विभाग व संसद तक को हिलाकर रख दिया। आखिर दिखा ही दिया कि नेता सब कुछ से उपर होता है। पर यह बात अलग है कि आज वह एयर इंडिया का कर्मचारी अपनी जीवन सुरक्षा की दुहाई देता घूम रहा है। अल्लाह इनको जीवन बख्शे
देश को हिन्दु राष्ट्र बनाना, मुसलमान या तो हिन्दु बन जाएं या देश छोड़ जाएं, दलित भी अपने पूर्व पेशों व जीवन में आ जाए यानि ठीक मनु व्यवस्था में। आरक्षण तो खैर आज नहीं तो कल खत्म कर ही दिया जाएगा। संविधान बदलने की भी मांग व प्रयास तेज हैं और इसमें से धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद जैसे फालतु शब्द तो हटने ही वाले हैं जिनकी दुहाई बार-बार कुछ असहिष्णु लोग जो आजाद देश में भी आजादी की मांग के नारें धरने-प्रदर्शनों में गुंजाते रहते हैं। उम्मीद है आप सभी नए हिन्दु राष्ट के निर्माण में, सबके विकास की खातिर तन-मन-धन से अपना योगदान चुप चाप देते रहेगें बिना किसी चूंचपट के। क्योंकि योगी व मोदी जी की भलाई में ही हिन्दुराष्ट्र की भलाई है। नहीं तो नोटबन्दी, रोजगार बन्दी, शराब बन्दी, मांस बन्दी के बाद अगला नंबर विरोधियों व विपक्षियों की सांस बन्दी का ही आता है। समझदार को इशारा ही काफी है। थोड़े लिखे को ज्यादा समझे....! जय हो ! जय भारत!
मुकेश कुमार
महावीर एन्कलेव दिल्ली!

 

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