नई दिल्ली: पीएनबी में हुए महाघोटाले के बीच एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है. लंबे समय से एनपीए से जूझ रहे भारतीय बैंक दिवालिया होने की कगार पर हैं. यह बात आरटीआई में सामने आई है. भारतीय बैंक लगातार दिए गए कर्ज को डूबते खाते में डाल रहे हैं. पिछले 5 साल में बैंकों के 3 लाख 67 हजार 765 करोड़ रुपए राइट ऑफ के जरिए डूब गए हैं. वहीं, इससे कहीं ज्यादा रकम को बैड लोन की कैटेगरी में शामिल किया जा सकता है. बैंक पर लगातार ऐसी रकम को डूबते खाते में डालने का दबाव बन रहा है.
चौकाने वाले हैं आंकड़े
आरटीआई में सामने आए आंकड़े चौंकाने वाले हैं. रिजर्व बैंक की तरफ से जो जानकारी मिली है उससे साफ है कि बैंक दिवालिया होने की तरफ बढ़ रहे हैं. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, 2012 से सितंबर 2017 तक पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर बैंकों ने आपसी समझौते में कुल 367765 करोड़ की रकम राइट ऑफ की है. इस राइट ऑफ में 27 सरकारी बैंक और 22 प्राइवेट बैंक शामिल हैं. इस बैंकों पर इतना दबाव बढ़ गया है कि ये दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने आरबीआई में एक आरटीआई डाली थी. जिसमें आरबीआई से जवाब मिला कि बैंकों की राइट ऑफ रकम लगातार बढ़ती जा रही है. वर्ष 2012-13 में राइट ऑफ की गई रकम 32127 करोड़ थी, जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर 1,03202 करोड़ रुपए पहुंच गई.
कब कितनी राशि की गई राइट ऑफ
सरकारी बैंकों की हालत ज्यादा खराब
आरबीआई के आंकड़ों से साफ है कि सरकारी बैंकों ने प्राइवेट बैंकों की तुलना में लगभग पांच गुना ज्यादा रकम राइट ऑफ की है. निजी क्षेत्र के बैंकों ने जहां साढ़े पांच साल में 64 हजार 187 करोड़ की रकम राइट ऑफ की. वहीं, सरकारी बैंकों ने इसी अवधि में 3 लाख 3 हजार 578 करोड़ की राशि को राइट ऑफ किया है.
किस आधार पर होता है राइट ऑफ?
बैंकिंग सिस्टम की बात करें तो राइट ऑफ का पैमाना बिल्कुल अलग है. कर्ज देते वक्त बैंक खातों को चार श्रेणी में बांटते हैं. यह खाते कर्ज की किस्त जमा करने के आधार पर तय होते है. कर्ज लेने वाला जो संपत्ति दिखाता है, उसके आकलन के आधार पर कर्ज मुहैया कराया जाता है. कई उद्योगों में सरकार सब्सिडी भी देती है.
ये हैं वो चार कैटेगरी
क्यों राइट ऑफ करते हैं बैंक?
कर्ज लेने के समय लोग अपनी संपत्ति का आकलन ज्यादा बताते हैं. इस आधार पर उन्हें बैंक से ज्यादा कर्ज मिलता है. इसमें दो फायदे होते हैं पहला, सब्सिडी का फायदा मिलता है और दूसरा कर्ज न चुकाने की स्थिति में खुद को डिफाल्टर दिखाकर लॉस खातों की श्रेणी में आ जाते हैं. इसके बाद संपत्ति का आकलन करने पर वह पहले की तुलना में कम निकलती है. इस स्थिति में बैंक संपत्ति की नीलामी से मिली रकम को लेकर समझौता करते हैं और बाकी बचे हिस्से को राइट ऑफ की कैटेगरी में डाल दिया जाता है.
क्यों बैंक हो जाएंगे दिवालिया?
बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर जी न्यूज को बताया कि दरअसल, कोई बैंक नहीं चाहता कि उसकी बैलेंस शीट खराब नजर आए. इसलिए राइट ऑफ की रकम लगातार बढ़ रही है. यह बैंकिंग सिस्टम ही नहीं बल्कि देश के लिए भी बड़ा खतरा है. क्योंकि, राइट ऑफ की रकम से आम उपभोक्ता को भी नुकसान पहुंचता है. इससे आम नागरिक का बैंकों से भरोसा कम होगा.
साभार जी न्यूज़